Monday, October 3, 2022

नवरात्र आयोजन:- गरबा

सनातन धर्म बह्यन्तर कारको से अधिक अभ्यंतर कारको से विकृतता की ओर अग्रसर है..........

"गरबा" के नाम पर जो आयोजन किये जा रहे है,उसमे मुख्य विषय अर्थात केंद्रबिंदु,दैवीय आराधना का होने के अतिरिक्त(बजाय).....सारे वो साधन उपलब्ध है,जो मनोरंजन एवं अन्य मानवीय स्वार्थिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक है। इस तारतम्य में अनेक मंडल एवम समिति माता की आराधना एवं भक्ति जैसे तथाकथित पोस्टर छपवा कर ऐसे सेलेब्रिटी(नायिका) को मुख्य आथित्य अथवा नृत्य/गायन प्रदर्शन हेतु आमंत्रित करते है........जिन्हें माता से दूर दूर तक कोई सरोकार नही और वह मनमाने ढंग से नृत्य/गायन,जो लोगो के बीच एक मनोरंजन(@$#%) माहौल पैदा कर दे,प्रस्तुत करती है। इस पूरे क्रम उनका कोई दोष नही,क्योकि वो तो अपने कार्यक्षेत्र के अनुरूप कार्य कर रहे है। उनका तो कार्य ही है,रंगमंच पर ऐसे रस से युक्त कार्यक्रम की प्रस्तुति करना,जिस हेतु वह लब्धप्रतिष्ठ है।

इसमें मुख्य रूप जवाबदेह तो हम और हमारा ये समाज है,जो अपने ही आराध्य(माँ दुर्गा) को आधार मानते हुए कुछ तुच्छ रसास्वादन हेतु ऐसे कार्यक्रम आयोजित कर रहे है अथवा उसमे शामिल हो रहे है।

गरबा जैसे सांस्कृतिक नृत्य के आत्मीकरण,स्वीकार्यता एवं  प्रसार का किंचित भी विरोध नही.......अपितु उनके मूलभूत तत्व(उद्देश्य/आराधना) को अल्पीकृत करना स्वीकार नही..........

और यदि जनमानस के क्षेत्रीय गर्व की भावना को केंद्रित करते हुए बात कही जाए तो हमे प्राथमिकता "सुवा नृत्य","जसगीत" एवं "कर्मा नृत्य" को देना चाहिए,जिससे हममे स्वयं की क्षेत्रीय संस्कृति के प्रति गर्व का भाव जागृत होगा...........और संस्कृति संरक्षण एवं संवर्धन के उद्देश्य भी पूर्ण होंगे.........

और यह स्थिति फिर वर्तमान में कही जा रही तथाकथित गर्वयुक्त ध्येयवाक्य "छत्तीसगढ़िया,सबले बढ़िया" को प्रासंगिकता के पैमाने पर अस्तित्वमय करेंगी और जो अपनी यथार्थता को प्राप्त करेगी.......🤔🤔🤔

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